राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 272

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीसिद्धेश्वरी-लीला

(तुक)

तिल भर सूड़ रही जल ऊपर तब हरि नाम पुकार्यौ।।

परंतु पूरौ नाम नहीं आधौ ही नाम लियौ, तब ही वाकौ उद्धार है गयौ। दूसरौ प्रमान द्रौपदी कौ है-
(तुक)

द्रुपत-सुता निर्बल भइ जा दिन, तजि आये हरि धाम।
दुःसासन की भुजा थकित भइ, बसन रूप भये स्याम।।3।।

भैयाऔ! पहलें तौ द्रौपदी दुःसासन सौं आप जूझी, परंतु दुःसासन वाके केसन कूँ पकरि कैं सभा में खेंचतौ भयौ लै गयौ। फिर द्रौपदी नें अपने पतिन की ओर निहार्यौ, उनने हूँ नीची ग्रीवा करि लीनी। फिर सभा में बैठ गये भीष्म, द्रोनादिकन की ओर गुहार्यौ, उनने हूँ अपने आँख कान बंद करि लीने। भैयाऔ! सब बल गयौ, तब निर्बल बनी। अपने साँवरे सखा की याद आई। तौ हू पूरी सरन न गई, एक हाथ सौं सारी पकरि अपनौं बल करती गई और दूसरौ हाथ उठाय रोय कैं ‘कहि कैं टेरी। किंतु वे काहे कूँ सुनते। जब ताईं जीव एक तृन कौ हू आस्रय लिये भये हैं तब ताईं भगवान नहीं सुनै है।’

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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