राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 271

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीसिद्धेश्वरी-लीला

भैयाऔ, सब मिलिकैं प्रेम सौं ‘हरी’ बोलौ। ऐसैं नहीं, दीन हैकैं, गरीब हैंकैं बोलौ। कारन कि वे दीनानाथ हैं, गरीब-निवाज हैं। जब जीव दीन बिन जाय है, तब अजा सिंह कूँ खाय जाय है। और चैंटी हाथी कूँ मसल डारै है। कारन कि ‘निरबल के बल राम’। निरबल के द्वै अर्थ हो य है। ‘निर्गतो बलं यस्मात्’ जामैं सौं बल निकरि गयौ होय, वोहू निर्बल है। ‘निःशेषं अशेषं बलं यस्मिन्’ अर्थात् जामैं असीम बल होय, वोहू निर्बल है। और जो जन अपने बल सौं बलवान बनैं हैं, वो पहिली कोटि के निर्बल हैं अर्थात् दूबरे हैं। जो भगवद् बल सौं मस्त हैं, वे दूसरी कोटि के निर्बल हैं अर्थात् असीम बलवारे हैं। जो बंसी की तरह सन्य है जायँ हैं, वाही मैं बिस्व कूँ उलट पुलट करि दैबे की सक्ति आय जाय है। जो जीव निर्धन बनि जाय है, वही परम धन कँ पाय लेय है। यासौं भैयाऔ, निज अहंकार तजि प्रेम सौं ‘हरि’ बोलौ। अब निरबल के बल मैं प्रमान सुनौं।

(पद)

जब लगि गज बल अपनौं बरत्यौ, नेक सर्यौ नहिं काम।
निर्बल ह्वै बल राम पुकार्यौ, आये आधे नाम।।2।।

भैयाऔ, जब गज कूँ ग्रांह नें पकरि लियौ, तब पहिलें तौ वानें अपनौं बल लगायौ, फिर वाकी हथिनीन नें बल लगायौ, फिर बन के सब हाथीन नें मिलि कैं बल लगायौ, किंतु ग्राह के आगे सब बल व्यर्थ गयौ। और गज पानी मैं डूबतौ ही गयौ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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