राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 248

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-सम्पुट लीला

देवी- क्यों जी, बियोग में कहा सुख है?

श्रीजी- अजी, मधुर-रस की पुष्टि संजोग और बियोग दोनूँन ते ही होय है।

देवी- अजी, तौ हू आपकूँ तौ कष्ट ही दियौ?

श्रीजी- देखौ, हित की इच्छा करिबेवारौ जो मित्र है, वो मित्रकूँ यदि कबहूँ कष्ट देय है तो भविष्य में अधिक सुख दैवे के ताईं ही देय है। जैसैं कोई तीखे अंजन कूँ आँखिन में आँजै वा समय अपनी दृष्टि कूँ जरन पीड़ा दै है परंतु पीछें अपनी दृष्टि कूँ अतिसय दीप्त करिबे के लिए ही वह ऐसौ करै है। सो हे देवांगने, प्रियतम ने मोकूँ प्रेम ते कंधा तर में चढ़ाय लई और दो पैंड़ लै जाय कह्यौ कि छन मार तुम यहाँ विश्राम करौ, फिर कोमल स्थान पर बैठाया आप छिपि कैं वही रहते भये।

यासौं वे रास में छाड़िबे में अपराधी नहीं है। फिर तुम ने कही कि उनने पूतना, अघासुर, बकासुर मार दिये सो श्रीगर्गाचार्य जी ने स्पष्ट कही है कि उनके हृदय में बिष्नुसक्ति कौ निवास है। ये बिष्नु-सक्ति संत जनन कूँ सुख दैबेवारी है, सो ये सब कर्म बिष्नु-सक्ति कौ है।

देवी- हे राजकुमारी, आप अच्युत जोगसास्त्र कूँ कहा जानौ हौ? तभी तौ आपमें प्रियतम के मन में प्रबेस करिबे की सक्ति है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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