विषय सूची
श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीप्रेम-सम्पुट लीलाअजी, वाकें लोक-लज्जा तथा धर्म दोनों ही नहीं है और वो दया-मार्ग में तौ कबहूँ चल्यौ ही नहीं है। वानें बाल-अवस्था में तो पूतना मारी और पौंगड अवस्था में बत्सासुर कूँ मार्यौ और तरुन अवस्था में वृषासुर की हिंसा करी।
हे सुभगे, जैसैं प्यारे प्रीतम में सर्वजन्म के चित्त कूँ आकर्षित करिबे की एक बिलच्छन सक्ति बिराजमान है, ऐसें आपमें हू सर्वजन के चित्त कूँ खैंचिवे की एक सक्ति बिराजमान है। यद्यपि तुम मेरे प्यारे की खूब पेट भरि कैं निन्दा कर रही हौ, तौ हू मेरे मन में तुम्हारे प्रति अनुराग घटि नहीं रह्यौ है। वैसैं इतनौ तौ मैं निस्चय जान गई कि तुम कूँ प्रेम की पवन हू नाँय लगी।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज