राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 241

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-सम्पुट लीला

हे सखी, ऐसौ जो रास भयौ सो सत्य है ना?
श्रीजी- हाँ जी, सत्य है।
देवी- और फिर वा समय गोपिन कूँ त्यागि आपमें प्रेम प्रगट कियौ। तत्पस्चात् आपकूँ थकी भईं कूँ अकेली बन में छाँड़ि अति दुखित कियौ। और फिर अत्यंत करुन स्वर में आपकौ बिलाप, गाढ़ी मूर्च्छा, अति भ्रम-चेष्टा जो-जो भई, सौ जन्म ते हमारे हृदय में विद्यमान है। हे राजकुमारी! आपमें मेरौ मन ऐसौ लगि गयौ है कि न तो वह स्वर्ग जायबे कूँ समर्थ है और न यहाँ ही ठहरिबे के जोग्य है, या ही सौं सर्बदा घूमती ही रहूँ हूँ। कहूँ मेरो मन स्थिरता कूँ प्राप्त नहीं होय है। आज मैंने बहुत दिनन के पस्चात् आपके आगें अपने मन कौ भाव प्रगट कियौ है।
श्रीजी- जो मोकूँ चित चहत है, तो तुम रहौ समीप।
देवी- यहाँ ना रहौं।
श्रीजी- क्यों ना रहौ।
देवी- सुनो बिनय कुलदीप! अजी, या कौ कारन और ही है, सो मैं आपकूँ सुनाऊँ हूँ। मैं कृष्न तें बहुत ही डरूँ हूँ।
श्रीजी- तुम उन सौं इतनी क्यौं डरौ हौ।

देवी-
जाके लज्जा-धर्म नहिं दया-मया नहिं कोय।
ऐसे हृदय कठोर ते डरनौ ही सुभ होय।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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