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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीप्रेम-सम्पुट लीला
(दोहा)
हे देवांगने, जो वे ही प्रेम कूँ नहीं जानैं हैं तो ऐसौ कौन होयगो जो प्रेम-तत्त्व कूँ जानैगौ। प्रेम-तत्त्व तौ उनही में रहै है और वे ही प्रेम के भवन हैं।
हे राधे, बृंदाबन में आपके संग कपट-प्रेम सौं खेलत रहे, दूसरे दिन आपसौं खेलिबे कूँ रह्यौ, तब आप तौ बन में पधारीं परंतु स्यामसुंदर नहीं आये, काहू और गोपी के यहाँ चले गये। वा समय प्रियतम के बियोग में आपने जो बिलाप कियौ, वाकूँ सुनि कैं सखीगन एवं लतागन हू बिलाप करिबे लगे। मैं वा समय बंसीवट पै ही रही और वे सब चरि मैंने अपनी आँखन सौं देखे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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