राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 239

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-सम्पुट लीला

श्रीजी-

(दोहा)

वे ही जानत प्रेम नहिं, तौ जानत है कौन।
प्रेम-तत्त्व उनमें रहै, वे ही प्रेम के भौन।।

हे देवांगने, जो वे ही प्रेम कूँ नहीं जानैं हैं तो ऐसौ कौन होयगो जो प्रेम-तत्त्व कूँ जानैगौ। प्रेम-तत्त्व तौ उनही में रहै है और वे ही प्रेम के भवन हैं।
देवी- अजी, मैंने आपके प्रेम-भवन की सब लीला देखी है।
(दोहा)

इक दिन बृंदा-बिपिन में तुम सँग कियौ बिलास।
हँसत खिलावत खेल करि कपट प्रेम परकास।।

हे राधे, बृंदाबन में आपके संग कपट-प्रेम सौं खेलत रहे, दूसरे दिन आपसौं खेलिबे कूँ रह्यौ, तब आप तौ बन में पधारीं परंतु स्यामसुंदर नहीं आये, काहू और गोपी के यहाँ चले गये। वा समय प्रियतम के बियोग में आपने जो बिलाप कियौ, वाकूँ सुनि कैं सखीगन एवं लतागन हू बिलाप करिबे लगे। मैं वा समय बंसीवट पै ही रही और वे सब चरि मैंने अपनी आँखन सौं देखे हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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