राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 237

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-सम्पुट लीला

श्रीजी-
बेगि प्रकासित कीजिए गोपि न राखौ आप।
हे सखी, वह ताप कौन-सौ है, सो वाकूँ सीघ्र ही कहौ।
देवांगना-
हे राधे! तुम स्याम तैं कैसैं कीन्ही प्रीति।
जोग्य नहीं वे प्रीति के, सदा करत अनरीति।।
प्रीति न कीजै हे सखी, जो अपने सम नाहिं।
ऐसे के संबंध में, दुख सिवाय सुख नाहिं।।

हे राधे, नंदनंदन में आपकी प्रीति कैसैं भई? वे तो प्रीति के जोग्य नहीं है। जो अजोग्य स्थान में प्रीति करै है, वे समझदार है कैं हू अपने आपकूँ और अपने संबंधीन कूँ हू दुखी ही करै है।
श्रीजी-

कहा बौरी-सी बकत हौ, सुंदर नहिं कै बीर।
ब्रजसुंदर ब्रजचंद सम, को गुन गहर-गंभीर।।

हे देवांगने! तुम बावरी के समान कहा बकि रही हौ? बहिन, यह तुम्हारी धारना उचित नहीं है। ब्रजसुंदर के समान गंभीर गुनन सौं जुक्त और कौन है?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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