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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीप्रेम-सम्पुट लीला
हे राधे, नंदनंदन में आपकी प्रीति कैसैं भई? वे तो प्रीति के जोग्य नहीं है। जो अजोग्य स्थान में प्रीति करै है, वे समझदार है कैं हू अपने आपकूँ और अपने संबंधीन कूँ हू दुखी ही करै है।
हे देवांगने! तुम बावरी के समान कहा बकि रही हौ? बहिन, यह तुम्हारी धारना उचित नहीं है। ब्रजसुंदर के समान गंभीर गुनन सौं जुक्त और कौन है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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