- यह सुख तीन भुवन में नाहीं, जो हरि सँग पल एकैं।
- सूर निरखि नारायन इकटक भूले नयन निमेषैं।।
हे लाड़िली, जब मुरली -ध्वनि कौ प्रभाव देवांगनान में दिन-प्रति-दिन बढ़न लग्यौ, तब मैंने अपने मन में विचार कियौ कि हाय, यह मुरली ध्वनि कौन बस्तु है? यह नाद कहाँ सौं आवै हैं और याकौ बजावनवारौ कौन है?
ऐसे विचार करि कैं मैं स्वर्ग तें भूलोक मैं आई और कछु दिन बंसीबट पै निवास करि कैं हरि कौ अलौकिक प्रकार कौ बिहार देख्यौ और गोपीन के संग जो हरि कौ बिहार भयौ, ताहू कूँ देख्यौ।
श्रीजी- हे सुमुखी, जब आपने बंसीबट पै निवास कियौ, तब तौ वहाँ कौ सर्वानंद देख्यौ ही होयगौ।
देवांगना- अवस्य सखी, तुम्हारौ और स्यामसुंदर को बिहार भयौ सो सब देख्यौ और ब्रजगोपिन के संग हू जैसो भयौ, सोऊ सब देख्यौ।
- श्रीजी-
(दोहा)
- परम चतुर हौ हे सखी, तुम सम नहिं कोउ आन।
- याही सौं बलवान भइ, उत्कंठारूप कृपान।।