(पद)
(राग काफी, खमाज, त्रिवट, ताल त्रिकाल)
- माधुरी धुनि बाँसुरी बाजी बीर! धीर बिसरी, हिय लागी नेह-कटरिया जिय
- कसक उठी तीन ग्राम सप्त स्वरन सौं बाजी चरन चारुधुनि तिल्लान साजें
- नादिर्ता नादिर्ता नादिर्ता नादिर्ता नवल ढंग चतुरंग सुत्रैवट धेक्ता धेक्ता किट
- किट धा किट किट धा किट किट धा सां नि ध प म ग रे सा, सा
- रे ग म प ध नि सां।।
हे किसोरी, स्वर्ग की कहा चलै है, ऐसी कोई जगह नहीं है कि जहाँ बंसी की धुनि न पहुँची होय।
श्रीजी- हे कृसोदरी! बंसी की धुनि स्वर्ग तें आगें और हू कहूँ-पहुँची?
- देवांगना-
(पद)
- मुरली धुनि बैकुंठ गई।
- नारायन कमला सुनि दंपति अति रुचि हृदय भई।।
- सुनौ प्रिया! यह बानी अद्भुत, बृंदाबन हरि देखैं।
- धन्य-धन्य श्रीपति मुख कहि-कहि जीवन ब्रज कौ लेखैं।।
- रास-बिलास करत नँदनंदन, सो हम सौं अति दूरें।
- धनि ब्रज-धाम, धन्य ब्रज-घरनी उडि लागत वे धूरें।।