राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 231

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-सम्पुट लीला

देवांगना-
सकुचत हौ सखि बनन में, राजकुमरि कहा आप।
देबी ह्वै मैं बिक गई, (तुव) तनक प्रेम परताप।।

हे लाड़िली, कहा आपकूँ मेरी सखी बनिवे में संकोच लगै है? देखौ, मैं तो देबी है कैं हूँ आपकी है गई हूँ। यह निस्चय जानौ आपके प्रेम-समुद्र के एक कण मात्र के अनुभव ते आपकी दासी बननौ चाहूँ हूँ। हे राजकुमारी, अब मेरे मन की कथा कूँ स्रवन करौ। जा कारन सौं मेरे मन में दुखद विषाद उत्पन्न भयौ, ता संसय कौ हूँ आप छेदन करौ।
श्रीजी- वह संसय कहा है, सो प्रकास करौ।

देवांगना-
अहो किसोरी! बेनु-धुनि, बृंदाबन कै माहिं।
तासु पराक्रम स्वर्ग में ऐसौ प्रबल समाहिं।।
विष-मिश्रित अमृत-धुनी, परत स्रवन के माहिं।
देबी पति नित छाँड़ि कैं आलिंगन न कराहिं।।

हे राधे, बृंदाबन में जो बेनु धुनि होय है, वाही कौ पराक्रम हमारे स्वर्ग में ऐसी प्रबलता कूँ प्राप्त होय है कि स्रवन मात्र सों ही देवांगना अपने पतीन कौं आलिंगन त्याग दैं हैं, और विसेष अप्सरा प्रेमरूपी ज्वर सौं मूर्च्छित होय हैं और परस्पर में प्रेम वार्ता करिवे लगैं हैं-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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