देवांगना- स्वर्ग बसूँ, देवांगना।
श्रीजी- भुबि आई केहि काज?
देवांगना- आग्या पाय बताऊँगी।
श्रीजी- कहौ सकल तजि लाज।
देवांगना- हे राजदुलारी, मैं देवी हूँ। मेरौ निवास स्वर्ग में है।
श्रीजी- आप या पृथ्वी में कैसैं पधारी हौ?
देवांगना- आपकी आग्या पाऊँ तो बताऊँ?
श्रीजी- अवस्य, सब संकोच छोड़ि कैं कहौ।
देवांगना- हे राजदुलारी, जा कारन मैं ब्याकुल हूँ तथा आपके पास आई हूँ, सो आप स्रवन करौ। मोकूँ एक विवक्षित विषय (गोपनीय बात) जानिबेकी इच्छा भई है, वाकूँ आपके बिना कौन पूर्न करि सकै है?
श्रीजी- हे सुंदरी! आपने जो अपने कूँ देबी बतायी है सो सर्वथा मिथ्या नहीं है। हमने हूँ यही अनुमान कियौ, क्योंकि मनुष्यलोक में आपके समान रूपवारी और कोई नाँय है। या मनोहर अपूर्व कान्ति की कहा उपमा दऊँ, आप जैसी तो आप ही हौ। हे सारदकमलानने! हमने जो तुम सौं पति-बिरहिनी इत्याद तर्क ते परिहास कियौ सो सरल अंतःकरन ते कियौ है- आप या में मेरौ अपराध मत मानियौ। और जा समय ते आप हम सौं स्नेहजुक्त भई हौ, तब ही तें मैं हूँ आपकी है गई हूँ।