राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 230

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-सम्पुट लीला

देवांगना- स्वर्ग बसूँ, देवांगना।
श्रीजी- भुबि आई केहि काज?
देवांगना- आग्या पाय बताऊँगी।
श्रीजी- कहौ सकल तजि लाज।
देवांगना- हे राजदुलारी, मैं देवी हूँ। मेरौ निवास स्वर्ग में है।
श्रीजी- आप या पृथ्वी में कैसैं पधारी हौ?
देवांगना- आपकी आग्या पाऊँ तो बताऊँ?
श्रीजी- अवस्य, सब संकोच छोड़ि कैं कहौ।
देवांगना- हे राजदुलारी, जा कारन मैं ब्याकुल हूँ तथा आपके पास आई हूँ, सो आप स्रवन करौ। मोकूँ एक विवक्षित विषय (गोपनीय बात) जानिबेकी इच्छा भई है, वाकूँ आपके बिना कौन पूर्न करि सकै है?

श्रीजी- हे सुंदरी! आपने जो अपने कूँ देबी बतायी है सो सर्वथा मिथ्या नहीं है। हमने हूँ यही अनुमान कियौ, क्योंकि मनुष्यलोक में आपके समान रूपवारी और कोई नाँय है। या मनोहर अपूर्व कान्ति की कहा उपमा दऊँ, आप जैसी तो आप ही हौ। हे सारदकमलानने! हमने जो तुम सौं पति-बिरहिनी इत्याद तर्क ते परिहास कियौ सो सरल अंतःकरन ते कियौ है- आप या में मेरौ अपराध मत मानियौ। और जा समय ते आप हम सौं स्नेहजुक्त भई हौ, तब ही तें मैं हूँ आपकी है गई हूँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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