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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला
पद (राग भीमपलासी, ताल कहरवा)
प्रीतम! बस, इतनौ हीं चाहूँ कि जीवन में, मृत्यु में, जन्म-जन्मान्तर में तुम ही मेरे प्राननाथ बने रहौ, तुम्हारे चरन और मेरे प्रानन में प्रेम की गाँठ लगी रहै। मैं तुम्हारे चरनन में अपनौ जीवन समर्पित कर चुकी, प्रानेस्वर! त्रिभुवन में तुम्हारे सिवाय मेरौ और कौन है, जो मोकूँ राधा कहि कैं पुकारै? कहाँ जाऊँ, चारों ओर ज्वाला जरि रही हैं; वाकूँ सीतल करिबे कूँ केवल आपकौ ही मुखचंद्र है। वाके सिवाय और मेरी गती ही कहाँ है। तुम यदि दूर फेंक देऔगे तो मैं अबला कहाँ जाऊँगी। तिहारे बिना देखें मेरे प्रान निकसिवे कूँ आतुर है जायँ हैं। प्रीतम! कहा साँचें ही मोकूँ आपसौ सौ बरस अलग रहनौं परैगो? हाय! जा समय मैंनें सुदामा कूँ श्राप दियौ, तब मेरी जीभ क्यों न जरि गई? प्राननाथ! प्यारे! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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