राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 213

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

राग-रागिनी सम जिन कौ बोलिबौ सुहायौ।
सो कैसैं कहि आवै, जो ब्रजदेबिन गायौ।
ग्रीव-ग्रीव भुज मेलि केलि कमनीय बढ़ी अति।
लटकि-लटकि वह निरतनि कापै कहि आवै गति।।
छबि सौं नृत्यत मटकन लटकन मंडल डोलत।
कोटि अमृत सम मुसकन मंजुल ताथेइ बोलत।।
कोउ उन ते अति गावत सुलप लै नइ-नइ।
सब संगीत जु छेकें सुंदर गान करत भइ।।
अप-अपनी गति भेद तहाँ नृत्य करत तब।
गंध्रब मोहे तिहि छन सुंदर गान करत जब।।
भुजदंडन सौं मिलत ललित मंडल नृत्यत छबि।
कुंडल कुच सौं उरझि मुरझि रहे तहँव डरे कबि।।
पिय के मुकुट की लटकनि मटकनि मुरली-रव अस।
कुहुक-कुहुक मनों नाचत मंजुल मोर भरें रस।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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