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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला
- तसिय मृदु पद-पटकनि, चटकनि कठतारन की।
- लटकनि-मटकनि-झलकनि कल कुंडल-हारन की।।
- साँवरे पिय सँग निरतत चंचल ब्रज की बाला।
- मनु घन-मंडल खेलत मंजुल चपला-माला।।
- चंचल-रूप लतनि सँग डोलति जनु अलि सेनी।
- छबिलि तियन के पाछें आछें बिलुलित बेनी।।
- मोहन पिय की मलकनि, ढलकनि मोर-मुकुट की।
- सदा बसौ मन मेरे फरकनि पियरे पट की।।
- बदन-कमल पर अलक छुरित कछु स्रम-कन झलकन।
- सदा रहौ मन मेरे मोर-मुकुट की ढलकन।।
- कोउ सखि कर पर तिरप बाँधि निरतत छबिली तिय।
- मानहुँ करतल फिरत लटू लखि लटू होत पिय।।
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