राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 206

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

(श्लोक)

भजतोऽपि न वै केचिद् भजन्त्यभजतः कुतः।
आत्मारामा ह्याप्तकामा अकृतज्ञा गुरुद्रुहः।।

अर्थ- जो प्रेम करिबेवारे और प्रेम न करिबेवारे दोनूँन कूँ तजैं, वे चार प्रकार के होयँ हैं- आत्माराम, आप्तकाम, अकृतज्ञ, गुरुद्रोही। आत्माराम वे, जो नित्य अपनी आत्मा में ही रमण करैं हैं। पूर्णकाम वे, जिनमें कोई कामना उदय ही नायँ होय है। अकृतज्ञ वे, जो काहू के लिए कूँ नहीं मानैं। गरुद्रोही वे, जो अपनौं हित करिबावारे गुरु-तुल्य जन सौं हू द्रोह करैं।
सखी- बीर! तौ इनकूँ कौन स्रेनी में राखैं? कहा ये आत्माराम हैं?
दूसरी सखी- नायँ, बीर! जो आत्माराम होते तौ अपनी आत्मा में ही रमण करते, हमकूँ क्यौं बुलावते।
सखी- तौ कहा ये पूर्णकाम है?
दूसरी सखी- नायँ, सखी! जो पूर्णकाम होते तौ हमारी कामना पूर्ण करते। सखी-तौ कहा ये अकृतज्ञ हैं?
दूसरी सखी- नायँ, बीर! ये अकृतज्ञ नहीं हैं; ये किये कूँ तौं मानैं हैं।
सखी- तौ इनकूँ चौथेन में ही रहन देऔ।
दूसरी सखी- हाँ, बीर!

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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