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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला(श्लोक)
अर्थ- हे गोपियौ! जो भजते भयेन कूँ भजैं हैं, वे तौ केवल स्वार्थी होय हैं- जैसैं दो पसु परस्पर एक दूसरे कूँ चाटैं, या प्रेम में स्नेह परमार्थ कछू ही नहीं, केवल स्वार्थ ही स्वार्थ है।
(श्लोक)
अर्थ- हे सुंदरियौ! जो प्रेम न करिबेवारेन सौं हू प्रेम करैं हैं, वो महात्मा और माता-पिता होय है। जैसैं महात्मा में बीछू डंक मारै तौहू महात्मा तौ दया ही करैं हैं। ऐसें ही अपनौ पुत्र कुपुत्र होय, चाहै सुपुत्र होय, वाकौ माता पिता तौ हित ही चाहैं हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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