राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 204

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

सखियाँ- हे धर्मशास्त्रीजी, पहिलें तो आप बिना ही पूछें धर्म बतावै हे; अब आप सौं धर्म-स्रवन की इच्छा सौं पूछैं हैं, सो आप बताऔ।
ठाकुर जी- हाँ, गोपियौ! पूछौ।

सखियाँ- एक भजते कौं भजै, एक अनभजतनि भजहीं।
कहौ कान्ह ते कवन आहिं जे दुहुअनि तजहीं।।

(श्लोक)

भजतोऽनुभजन्त्येक एक एतद्विपर्ययम्।
नोभयांश्च भजन्त्येक एतन्नो ब्रूहि साधु भोः।।

अर्थ- हे नटनागर! कोई तौ प्रेम करिबेवारेन ते प्रेम करैं हैं, कोई प्रेम न करिबेवारेन ते हू प्रेम करैं हैं। कोई दौनोन ते हू प्रेम नायँ करैं, प्यारे! इन तीनों न मैं आपकूँ कौन सौ अच्छौ लग है सो कहौ।

ठाकुरजी-
जो भजतेन कूँ भजैं ते जु स्वारथ अपने हित।
जैसैं पसू परस्पर चाटत सुख मानत चित।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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