राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 203

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

कहुँ कज्जल, कहुँ कुंकुम, कहुँ पीक-लीकवर।
जहँ राजत नँद-नंद बृंद कंदर्प दर्प हरि।।
जोगीजन बन जायँ जतन करि कोटि जनम पचि।
अति निर्मल करि राखैं हिय में आसन रचि-रचि।।
कछु छिन तहँ नहिं जात नवल नागर सुंदर हरि।
जुबतिन के आसन पर बैठे सुंदर रुचि करि।।
कोटि-कोटि ब्रह्मांड जदपि इकली ठकुराई।
ब्रजदेविन की सभा साँवरें अति छबि पाई।।
ज्यौं नवदल मंडलहिं कमल कर्निका सुभ्राजै।
त्यौं सब गोपिन सनमुख सुंदर स्याम बिराजै।।

[यहाँ दूसरे दिन की लीला सम्पूर्ण होय]

बूझन लागीं नवल बाल नँदलाल पियहि तब।
प्रीत-रीत की बात मनहिं मुसकाति जाति सब।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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