राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 2

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला

(श्लोक)
मेघैर्मेदुरमम्बरं वनभुवः श्यामास्तमालद्रुमै-
र्नक्तं भीरुरयं तदिमं राधे गृहं प्रापय ।
इत्थं नन्दनिदेशतश्चलितयोः प्रत्यध्वकुञ्जद्रुमं
राधामाधवयोर्जयन्ति यमुनाकूले रहःकेलयः ।।

(पद)

चकित भए नँदराय जानि यह सीतल-मंद बयार ।
श्रीराधा-अंग-कांति परत बन भयौ सकल उजियार ।।
कोटि चंद्र द्युति सम मुख झलकत, नील बसन सुभ अंग ।
कंचन कंकन हार मुद्रिका दुरे अंग के रंग ।।
भयौ प्रकास प्रथम दिसि, कैंधौं मिले काल यहि ठौर ।
कैसें पच्छिम छाँड़ि छिप्यौ रबि अब पूरब की ओर ।।
कैंधौं आज इंदु-मंडल में घिर्यौ मनिन कौ कोट ।
नंद-कुँवर कर ढाँपि नैन तब झाँकत अँगुरी ओट ।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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