राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 197

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

अर्थ- हे प्यारे, जब तुम दिन के समै बन पधारौ हौ, तब तुम्हारे बिना देखें आधौ छन जुग समान बीतै है। और जा समैं घूँघरवारे केसन सौं जुक्त आप के मुखकमल कौ दरसन करें हैं, वा समैं नेत्रन पै पलक बनायबेवारौ ब्रह्मा मूर्ख बिदित होय है।
(श्लोक)

पतिसुतान्वयभ्रातृबान्धवानतिविलङ्ध्य तेऽन्त्यच्युतागताः।
गतिविदस्तवोद्गीतमोहिताः कितव योषितः कस्त्यजेन्निशि ।।16।।

अर्थ- हे स्यामसुंदर, हम पति-पुत्र, भाई-बंधुन कौ त्यागि गति के ज्ञाता तुम्हारे गीत तें मोहित है कैं तुम्हारे निकट आई हैं, हे कपटी, रात्रि के समैं आईं ऐसी स्त्रीन कौ तुम्हारे बिना कौन त्याग करि सकै है।
(श्लोक)

रहसि संविदं हृच्छयोदयं प्रहसिताननं प्रेमवीक्षणम्।
बृहदुरः श्रियो वीक्ष्य धाम ते मुहुरतिस्पृहा मुह्यते मनः ।।17।।

अर्थ- हे प्यारे! तुम्हारे एकान्त संकेत, काम की उद्दीपन करिबेवारे प्रेमभरी चितवन ते जुक्त हास्य, मुख और लक्ष्मी के निवासरूप तुम्हारे बिसाल हृदय कूँ देखि कैं हम कूँ बड़ी लालसा भई है। या कारन छन-छन में मन मोह कूँ प्राप्त होय है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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