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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला(श्लोक)
(तुक)
अर्थ- हे कांत, जब पसु चरायबे के लियें ब्रज तें बन पधारौ हौ, तब आप के कमल-समान सुंदर चरन काँकर, तृन और अंकुस गड़िबे सौं क्लेस पावें हैं- यह जानि कैं हमारौ मन कलपत रहै है।
अर्थ- हे बीर प्रीतम! तुम दिन के अवसर में नीले घूँघरवारे केसन सौं जुक्त गौ-रज सौं आच्छादित कमल समान मुख कूँ बारबार दरसन करावते हमारे हृदय में काम उत्पन्न करौ हौ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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