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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीलाअर्थ- प्रभो, संसार ते तप्त भये पुरषन कूँ जियायबेवारी आप की अमृतरूप कथा है। कबिन ने या कूँ पापनासक कह्यौ है और स्रवन करिवे ते मंगल करै है, सदा सान्त है; याकौ जो बिस्तार तथा निरूपन करें हैं, वे जन जीवनदान दैबेवारे हैं। आप कौ चरित्र सबरन सौं स्रेष्ठ तथा व्यापक है।
(तुक)
अर्थ- हे प्रीतम, तुम्हरौ प्रेम सौं देखनौं व हँसनौं और ध्यान में मंगलमय तुम्हरो बिहार, एकांत में संतप्त हृदय कूँ स्पर्श करिबे वारे मीठे बचन, हे कपटी मित्र- ये सब हमारे मन कूँ क्षुब्ध करें हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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