राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 193

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

अर्थ- प्रभो, संसार ते तप्त भये पुरषन कूँ जियायबेवारी आप की अमृतरूप कथा है। कबिन ने या कूँ पापनासक कह्यौ है और स्रवन करिवे ते मंगल करै है, सदा सान्त है; याकौ जो बिस्तार तथा निरूपन करें हैं, वे जन जीवनदान दैबेवारे हैं। आप कौ चरित्र सबरन सौं स्रेष्ठ तथा व्यापक है।
(श्लोक)

प्रहसितं प्रिय प्रेमवीक्षणं बिहरणं च ते ध्यानमंगलम्।
रहसि संविदो या हृदिस्पृशः कुहक नो मनः क्षोभयन्ति हि ।।10।।

(तुक)

कहाँ हमारी प्रीत, कहाँ तुम्हरी निठुराई।
मनि पषान सों खचै, दैव सौं कछु न बस्याई।।

अर्थ- हे प्रीतम, तुम्हरौ प्रेम सौं देखनौं व हँसनौं और ध्यान में मंगलमय तुम्हरो बिहार, एकांत में संतप्त हृदय कूँ स्पर्श करिबे वारे मीठे बचन, हे कपटी मित्र- ये सब हमारे मन कूँ क्षुब्ध करें हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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