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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला(श्लोक)
(तुक)
अर्थ- जदुबंससिरोमने! जो पुरुष संसार-भय ते तुम्हारी चरन-सरन में आवैं हैं, उन कूँ आप अभय करौ हौ और जा कर सौं आपने लक्ष्मीजी कूँ ग्रहन कियौ है, वही कामनादायक कर-कमल हमारे मस्तकन पै धारन करौ।
अर्थ- ब्रजबासीन के दुःख दर करिबेवारे हे बीर, निज जनन के गर्बध्वंसकरनहारी मुस्क्यानवारे, हम आप की दासी हैं। आप हम कूँ प्रेमदान देऔ और अपने कमल-मुख के हम कूँ दरसन कराऔ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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