राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 190

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

(श्लोक)

विरचिताभयं वृष्णिधुर्य ते चरणमीयुषां संसृतेर्भयात्।
करसरोरुहं कान्त कामदं शिरसि धेहि नः श्रीकरग्रहम् ।।5।।

(तुक)

अहो मीत! अहो प्राननाथ! यह अचरज भारी।
अपननि जौ मरिहौ, करिहौ काकी रखवारी।।

अर्थ- जदुबंससिरोमने! जो पुरुष संसार-भय ते तुम्हारी चरन-सरन में आवैं हैं, उन कूँ आप अभय करौ हौ और जा कर सौं आपने लक्ष्मीजी कूँ ग्रहन कियौ है, वही कामनादायक कर-कमल हमारे मस्तकन पै धारन करौ।
(श्लोक)

व्रजजनार्त्तिहन् वीर योषितां निजजनस्मयध्वंसनस्मित।
भज सखे भवत्किंकरीः स्म नो जलरुहाननं चारु दर्शय ।।6।।

अर्थ- ब्रजबासीन के दुःख दर करिबेवारे हे बीर, निज जनन के गर्बध्वंसकरनहारी मुस्क्यानवारे, हम आप की दासी हैं। आप हम कूँ प्रेमदान देऔ और अपने कमल-मुख के हम कूँ दरसन कराऔ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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