राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 189

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

अर्थ- पुरुषसिरोमने! जमुनाजी के बिषैले जल ते होयबे वारी मृत्यु, अजगर के रूप में खायबेवारे अघासुर, इंद्र की वर्षा, आँधी, बिजुरी, दावानल, बृषभासुर और ब्योमासुर आदि तें, और हू अवसरन पै सब प्रकार के भयन सौं हमारी आपने बार-बार रच्छा करी है।
(श्लोक)

न खलु गोपिकानन्दनो भवानखिलदेहिनामन्तरात्मदृक्।
विखनसार्थितो विश्वगुप्तये सख उदेयिवान् सात्वतां कुले ।।4।।

(तुक)

जब तुम जसुदा सुवन भए, पिय! अति इतराने।
बिस्व कुसल के काज बिधिहिं बिनती कै आने।।

अर्थ- तुम केवल जसोदानंदन ही नहीं हौ, समस्त सरीरधारीन के हृदय में रहिबेवारे उन के साक्षी हौ, अंतरयामी हौ, सखे, ब्रह्माजी की प्रार्थना ते बिस्व की रच्छा करिबे के लिए तुम जदुबंस में अवतीर्न भये हौ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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