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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीलाअर्थ- पुरुषसिरोमने! जमुनाजी के बिषैले जल ते होयबे वारी मृत्यु, अजगर के रूप में खायबेवारे अघासुर, इंद्र की वर्षा, आँधी, बिजुरी, दावानल, बृषभासुर और ब्योमासुर आदि तें, और हू अवसरन पै सब प्रकार के भयन सौं हमारी आपने बार-बार रच्छा करी है।
(तुक)
अर्थ- तुम केवल जसोदानंदन ही नहीं हौ, समस्त सरीरधारीन के हृदय में रहिबेवारे उन के साक्षी हौ, अंतरयामी हौ, सखे, ब्रह्माजी की प्रार्थना ते बिस्व की रच्छा करिबे के लिए तुम जदुबंस में अवतीर्न भये हौ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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