राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 186

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

समाजी-

(तुक)

दौरि भुजनि भरि लईं सबनि लै-लै उर लाईं।
मनहुँ महानिधि खोइ मध्य आधी निधि पाई।।
कोउ चुंबत मुख-कमल कोऊ, भ्रूभाल सुअलकैं।
जिन में पिय संगम की मंजुल स्रम-जल झलकैं।।
पौंछत अपने अंचल रुचिर दृंगचल तिय के।
पीक भरे सुकपोल लोल रद-क्षत पिय के।।

सखी- हे प्यारी जू! वे कठोर चित्तवारे हम कूँ छोड़ि गये सो छोड़ि गये, परंतु आप कूँ कैसैं छोड़ि गये?
श्रीजी- अरी सखी, मैंने उन सौं अभिमान कियौ, यासौं मोकूँ हूँ छोड़ि गये।
सखी- हे स्वामिनी जू, वे बड़े ही निठुर हैं। यौं कहैं है कि जहाँ कौ बिछुर्यौ, तहाँ ही मिलै है; सो हम सौं प्यारे जमुना तट पै बिछुरे हैं सो वहाँ ही मिलैंगे। यदि न मिले तौ यमुनाजी में कूदि कैं प्रान त्याग देंगी।
(तुक)

जित-तित तें सब अहुरि-बहुरि जमुना तट आईं।
जहँ नँद-नंदन जग–बंदन पिय लाड़ लड़ाई।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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