दूसरी सखी- अरी बीर, यदि ये वे ही हैं तौ कठोर चितवारे ब्रजराज-कुमार ने इन कूँ बिरह-दुख ते दुखित क्यों कियौ?
दूसरी सखी- सखी, हैं तो ये वे ही, अपने प्रीतम के संग बिहार करिबे के कारन इन कूँ नींद आय रही है। इन के प्यारे यहाँ ही कहूँ होंयगे।
दूसरी सखी- हाँ बीर, वे हमारे नूपुरन की धुनि कैं कहूँ यहाँ हीं छिपि गये हैं।
दूसरी सखी- अरी बीर, वे बड़े ही नीरस हैं।
दूसरी सखी- अरी बीर, उन कूँ तो रसिकन कौ तिलक कहैं है।
दूसरी सखी- हाँ सखी, रसिक-सिरोमनि पहिलें हे, अब नहीं। यदि रसिक-सिरोमनि होंते तौ सब के प्रान के प्यारी ऐसी राजदुलारी सुकुमारी कूँ इतनौ कष्ट न देते।
दूसरी सखी- सखी, ये वे तौ नहीं है। यदि वे होंती तौ स्यामसुंदर यहाँ अवस्य होते; इन में जो स्वामिनी रूप प्रतीत होय है, सो केवल हमारी बुद्धि की भ्रांति है।
दूसरी सखी- तौ ये कौन हैं?
दूसरी सखी- ये हम कूँ मोहित करिबे कूँ माधुरी देबी प्रगट भई हैं।
दूसरी सखी- नायँ-नायँ, ये माधुरी देबी नहीं, मूर्तिमती मूर्च्छा हैं।
दूसरी सखी- नहीं, बीर! ये मूर्तिमाती करुना हैं।