राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 184

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

दूसरी सखी- अरी बीर, यदि ये वे ही हैं तौ कठोर चितवारे ब्रजराज-कुमार ने इन कूँ बिरह-दुख ते दुखित क्यों कियौ?
दूसरी सखी- सखी, हैं तो ये वे ही, अपने प्रीतम के संग बिहार करिबे के कारन इन कूँ नींद आय रही है। इन के प्यारे यहाँ ही कहूँ होंयगे।
दूसरी सखी- हाँ बीर, वे हमारे नूपुरन की धुनि कैं कहूँ यहाँ हीं छिपि गये हैं।
दूसरी सखी- अरी बीर, वे बड़े ही नीरस हैं।
दूसरी सखी- अरी बीर, उन कूँ तो रसिकन कौ तिलक कहैं है।
दूसरी सखी- हाँ सखी, रसिक-सिरोमनि पहिलें हे, अब नहीं। यदि रसिक-सिरोमनि होंते तौ सब के प्रान के प्यारी ऐसी राजदुलारी सुकुमारी कूँ इतनौ कष्ट न देते।
दूसरी सखी- सखी, ये वे तौ नहीं है। यदि वे होंती तौ स्यामसुंदर यहाँ अवस्य होते; इन में जो स्वामिनी रूप प्रतीत होय है, सो केवल हमारी बुद्धि की भ्रांति है।
दूसरी सखी- तौ ये कौन हैं?
दूसरी सखी- ये हम कूँ मोहित करिबे कूँ माधुरी देबी प्रगट भई हैं।
दूसरी सखी- नायँ-नायँ, ये माधुरी देबी नहीं, मूर्तिमती मूर्च्छा हैं।
दूसरी सखी- नहीं, बीर! ये मूर्तिमाती करुना हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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