राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 181

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

मेरे प्रान तौ निकसि ही जायँगे, परंतु आप मेरी बिना प्रान की देह कूँ कंधा पै धरि कैं अवस्य बन-बन में डोलौगे और पछिताय कैं कहौगे कि ‘यदि मैं पहिलें ही छन भर प्यारी जू कूँ कंधा पै बैठाय लैतौ तौ ये दुख मोकूँ काहे कूँ सहनौ परतौ।’ से या आपकूँ आयबेवारे कष्ट कूँ समझि कैं मेरे प्रान निकसैं हूँ नहीं है। और बिरह-दुख सूं ठहरै हूँ नहीं हैं, यासौं आप बेगि ही दरसन देऔ।

पद (राग बिहग)

बायें कर द्रुम टेकें ठाड़ी।
बिछुरे मदनगोपाल रसिक मोहिं, बिरह ब्यथा तन बाढ़ी।।
लोचन सजल, बचन नहिं आवैं, स्वास लेत अति गाढ़ी।
नंदलाल ऐसी हमसों करी, जल में मीन धरि काढ़ी।।
तब कित लाड़ लड़ाय लड़ैंते, बेनी कुसुम गुहि गाढ़ी।
सूरस्याम प्रभु तुमरे दरस बिनु अब न चलत पग आढ़ी।।

[ढूँढ़ती भई सखी आवै]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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