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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीलामेरे प्रान तौ निकसि ही जायँगे, परंतु आप मेरी बिना प्रान की देह कूँ कंधा पै धरि कैं अवस्य बन-बन में डोलौगे और पछिताय कैं कहौगे कि ‘यदि मैं पहिलें ही छन भर प्यारी जू कूँ कंधा पै बैठाय लैतौ तौ ये दुख मोकूँ काहे कूँ सहनौ परतौ।’ से या आपकूँ आयबेवारे कष्ट कूँ समझि कैं मेरे प्रान निकसैं हूँ नहीं है। और बिरह-दुख सूं ठहरै हूँ नहीं हैं, यासौं आप बेगि ही दरसन देऔ।
[ढूँढ़ती भई सखी आवै] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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