विषय सूची
श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला
(श्लोक)
अर्थ- हा नाथ, हा रमण, हा प्रेष्ठ, हा महाभुज, तुम कहाँ हौ, कहाँ हौ, मेरे सखा? मैं तुम्हारी दीन-हीन दासी हैं, सीघ्र ही मोकूँ दरसन देऔ।
अर्थ- हे प्यारे! जब ताई मेरे प्रान नायँ निकसैं, तब ताईं रोष छोड़ि कैं दरसन देऔ। प्यारे! यदि आप यौं कहौ कि ‘मेरे बिना घरी-द्वै-घरी तौ प्रान रहैंगे’ सो नहीं; कारण कि ये प्रान बड़े चंचल हैं, इनने अपने स्थान कौ हू परित्याग करि दियौ है और यदि आप यों सोचौ कि ‘यदि तुम्हारे प्रान निकसि ही जायँगे तौ याते हमारी कहा हानि है?’ सो या बात कूँ मैं जानूँ हूँ कि आपकौ मेरी बीच में अत्यंत प्रेम है, याते मेरे बियोग कौ दुख आप कूँ अवस्य होयगो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज