राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 170

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

Prev.png

श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

(तुक)

कोउ गिरिबर अंबर का कर धरि बोलत है तब।
निडर इनहिं तर रहौ ग्वाल-गोपी-गायन सब।।

(श्लोक)

मा भैष्ट वातवर्षाभ्यां तत्त्राणं विहितं मया।
इत्युक्त्वैकेन हस्तेन यतन्त्युन्निधेऽम्बरम्।।

अर्थ- कोई कहिबे लगी- ‘ब्रजवासियौ! तुम डरौ मत, आँधी-पानी ते बचिबे कौ मैंने उपाय सोच्यौ है।’ ऐसे कहि अपनी ओढ़नी तान लीनी और गोबर्धन लीला करिबे लगी।
(तुक)

कोउ जमलार्जुन भंजि फनि-फन नृत्य ललन कौ।
कोउ कहै मीचहु लोचन, मोचन दावानल कौ।।

(श्लोक)

आरुह्यैका पदाऽऽक्रम्य शिरस्याहापरां नृप।
दुष्टाहे गच्छ जातोऽहं खलानां ननु दण्डधृक्।।

अर्थ- एक काली नाग बनी, दूसरी कृष्ण बनि वाके माथे पै पाँव धरि कहिबे लगी- ‘अरे दुष्ट सर्प! तू यहाँ ते चल्यौ जा, मैं दुष्टन कूँ दमन करिवे कूँ प्रगट भयौ हूँ।’

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः