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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला(तुक)
(श्लोक)
अर्थ- कोई कहिबे लगी- ‘ब्रजवासियौ! तुम डरौ मत, आँधी-पानी ते बचिबे कौ मैंने उपाय सोच्यौ है।’ ऐसे कहि अपनी ओढ़नी तान लीनी और गोबर्धन लीला करिबे लगी।
(श्लोक)
अर्थ- एक काली नाग बनी, दूसरी कृष्ण बनि वाके माथे पै पाँव धरि कहिबे लगी- ‘अरे दुष्ट सर्प! तू यहाँ ते चल्यौ जा, मैं दुष्टन कूँ दमन करिवे कूँ प्रगट भयौ हूँ।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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