राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 169

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

(तुक)

हरि की सी चलनि, बिलोकनि, हरि-की-सी बोलनि-हेरनि।
हरि की-सी गायन घेरनि, टेरनि, पट चहुँ फेरनि।।

(श्लोक)

आहूय दूरगा यद्वत् कृष्णस्तमनुकुर्वतीम्।
वेणुं क्वणन्ती क्रीडन्तीमन्या
शंसन्ति साध्विति॥

(श्लोक)

कस्यांचित् स्वभुजं न्यस्य चलन्त्याहापरा ननु।
कृष्णोऽहं पश्यत गतिं ललितामिति तन्मनाः।।

(तुक)

हरि की-सी बन तें आवनि, गावनि अति रस-रंगी।
हरि की-सी कौतुक रचनि, नचनि पुनि होत त्रिभंगी।।

अर्थ- एक गोपी दूसरी के गरे में बाँह डारि कैं कहिबे लगी, मित्रो! देखो, मैं कृष्ण हूँ, मेरी मनोहर चाल देखौ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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