(श्लोक)
- चूतप्रियालपनसासनकोविदारजम्ब्वर्कबिल्वबकुलाभ्रकदम्बनीपाः।
- येऽन्ये परार्थभवका यमुनोपकूलाः शंसन्तु कृष्णपदवीं रहितात्मनां नः।।
अर्थ- हे रसाल! प्रियाल, कटहर, पीत साल, कचनार, जामुन, आक, बेल, मौलसिरी, आम, कदंब, नीप और अन्यान्य जमुना-तट पै बिराजमान सुखी तरुबरौ, तुम्हरौ जन्म-जीवन केवल परोपकार के लिए ही है। हमरौ जीवन श्रीकृष्ण के बिना सूनौ है रह्यौ है। हम तुम सब सौं प्रार्थना करैं हैं, तुम हमें उनकौ बताय देऔ।
सखी- अरी बहिनाऔ, तुम सब सौं एक संग पूछौ हौ, याही सौं ये नाँय बतावैं। ऐसो कौन है, जो अपनी बड़ाई न चाहतौ होय, यासौं एक-एक तैं पूछो।
दूसरी सखी- ओह बट, पहिरैं पीत, भेष जाकौ नट, स्याम जाकी लट, हमें बुलाई बंसीबट, कहूँ जमुना के तट पै जातौ देरव्यौ होय तौ बताय देऔ।
सखी- हे प्रियाल! प्रियतम सदा बसै रहैं तुम्हारे ख्याल, तुम नें उन नंदलाल कूँ जाँते देखे होयँ तौ बताय देऔ।
सखी- हे जामुन! हम सब भामिन वा मन भावन बिना ब्याकुल है रही हैं, सो तुमहीं बताय देऔ। हे आम, संग जाके बाम, भैया जाके बलराम, वे सुख के धाम, पूरनकाम, घनस्याम कूँ कहूँ देख्यौ होय तौ बताय देऔ।
सखी- हे कदंब! या ब्रज के अवलंब कूँ कहूँ देख्यौ होय तौ बताय देऔ। हे कुंद-कली! संग लियें एक अली, वे गये कौन सी गली, सो तू ही बताय दै।