राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 160

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

तीसरी सखी- अरी बीर, ये तौ हम ते सौतिया डाह राखै है, ये नायँ बतावगी। चलौ आगें पूछैं।
 
(तुक)

हे मालति! हे जाति! जूथिके! सुनि हित दै चित।
मान-हनर मन-हरन लाल गिरिधरन लखे इत।।
हे केतकि! इत तैं चितए कितहूँ पिय रूसे।
कै नँदनंदन मंद मुसकि तुमरे मन मूसे।।


(श्लोक)

मालत्यदर्शि वः कच्चिन्मल्लिके जाति यूथिके।
प्रीतिं वो जनयन् यातः करस्पर्शेन माधवः।।

अर्थ- हे मालती! चमेली! हे जाती! जूही! तुमनें कदाचित् हमारे प्यारे माधव कूँ देख्यौ होयगौ। कहाँ वे अपने कोमल करन सौं स्पर्श करि कैं तुम्हें आनंदित करते भये इत सौं गये हैं?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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