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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीलातीसरी सखी- अरी बीर, ये तौ हम ते सौतिया डाह राखै है, ये नायँ बतावगी। चलौ आगें पूछैं।
अर्थ- हे मालती! चमेली! हे जाती! जूही! तुमनें कदाचित् हमारे प्यारे माधव कूँ देख्यौ होयगौ। कहाँ वे अपने कोमल करन सौं स्पर्श करि कैं तुम्हें आनंदित करते भये इत सौं गये हैं? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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