राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 16

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला

(श्लोक)

अकारुण्यः कृष्णो यदि मय तवागः कथमिंद
मुधा मा रोदीर्मे कुरु परमिमामुत्तरकृतिम् ।
तमालस्य स्कन्धे सखि कलितदोर्वल्लरिरियं
यथा वृन्दारण्ये चिरमविचला तिष्ठति तनुः ।।


अर्थ- जमुना किनारें जो तमाल बृच्छ दीखै है, वाकौ वर्ण मेरे प्रीतम-जैसौ स्याम है। बस, मेरे लिए इतनौ ही पर्याप्त है कि वा तमाल बृच्छ की मोटी साखा पै मेरे मृतक सरीर कूँ लिटाय दीजौं और मेरे दोऊ हाथन कूँ तमाल- साखा सौं लपेट अच्छी तरह बंधन लगाय दीजौं कि जासौं चिरकाल ताईं मेरौ यह सरीर बृंदावन में ही तमाल-साखा पै बिस्राम करतौ रहै। परंतु वा चित्र कूँ तौ एक बार औरहू देखि लऊँ, साच्छात तौ वा त्रैलोक- मोहन मुख चंद्र कूँ नहीं देख सकी? प्रान निकरिबे ते पहिलें वा चित्र कूँ औरहू दिखाय दै, जासौं मेरे प्रान सीतल है जायँ और वा त्रिभंग-सुंदर छबि में अनंत काल के ताईं लीन है जायँ।

सखी- प्यारी, वह चित्र तौ घर है।

श्रीजी- हाय! हाय! इतनौ हूँ सौभाग्य नहीं। आऔ, प्यारे प्रानेस्वर!

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2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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