राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 150

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

ठाकुरजी- हे गोपयौ! जब साँचौ पति नायँ मिलै, तब ताईं ही प्रतिमा की सेवा करनी चाहियै- जब साँचौ पति आय गयौ, तब झूठे पति की सेवा क्यौं करै?
(सखिन कौ हँसनौ)
सखियाँ- बलिहार, बलिहार, महाराज! आपकौ ही मुख, आपकौ ही न्याव है।
ठाकुरजी- कैसें?
सखियाँ- हे महाराज! सबके साँचे पति तौ आप ही हो। जब ताईं आप नायँ मिले, हमने झूठेन की हू पूजा कीनी। अब तौ हम आपकी ही सेवा करैंगी।
ठाकुरजी- (स्वगत)
पद (राग-बिहाग, ताल त्रिताल)

मोहि बिना ये और न जानैं।
बिधि-मरजाद, लोक की लज्जा, तृन हू तैं घटि मानैं।।
इन मोकौं नीकैं पहिचान्यौ, कपट नहीं उर राख्यौ।
‘साधु-साधु’ पुनि-पुनि हरषित ह्वै, मनहीं मन यह भाष्यौ।।
पुनि हँसि कह्यौ निठुरता धरि कैं, क्यौं त्याग्यौ कुल-धर्म।
सूर स्याम मुख कपट, हृदय रति, जुबतिनि कौं अति मर्म।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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