राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 138

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

का स्त्र्यङ्ग ते कलपदायतमूर्च्छितेन सम्मोहिताऽऽर्यचरितात्र चलेत्त्रिलोक्याम।
त्रैलोक्यसौभागमिदं च निरीक्ष्य रूपं यद् गोद्विजद्रुममृगाः पुलकान्यबिभ्रन्।।

हे प्रियतम! त्रिलोकी में ऐसी कौन सी स्त्री है, जो आपके त्रैलोक्य-सौभागरूप के दरसन करि कैं तथा आपकी मधुर-मधुर मुरली-नाद कूँ सुनि कैं सर्बथा मोहित नायँ है जाय और अपनी आर्य मर्यादा कूँ नाँय त्याग देय। स्त्रीन की तो बात ही कहा आपको त्रिभुवन-मन-मोहन रूप एवं मुरली कौ संगीत ऐसौ मोहक है कि या कूँ सुनि कै गौ, मृग, पच्छी वृच्छादि हू पुलकायमान है जाय हैं- फिर बिचारी नारीन की कहा चलै।

व्यक्तं भवान् व्रजभयार्तिहरोऽभिजातो देवो यथाऽऽदिपुरुषः सुरलोकगोप्ता।
तन्नो निदेहि करपंकजमार्तबन्धो तप्तस्तनेष च शिरस्सु च किंकरीणाम्।।

हे दयामय! जा प्रकार आदिदेव भगवान नारायन देवतान की रच्छा करैं हैं, याही प्रकार निस्संदेह आप हू ब्रज के दुख-भय दूर करिबै कूँ प्रकटे हौ। हम हूँ आपके मिलन-मनोरथ की अग्नि सौं अत्यंत संतप्त हैं और आर्त्त हैं, यातैं आप हम किंकरीन के वक्षस्थल पै और सिरन पै अपनौ कोमल हाथ राखौ और हम सबन कूँ दुख-मुक्त करौ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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