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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला
हे प्रियतम! त्रिलोकी में ऐसी कौन सी स्त्री है, जो आपके त्रैलोक्य-सौभागरूप के दरसन करि कैं तथा आपकी मधुर-मधुर मुरली-नाद कूँ सुनि कैं सर्बथा मोहित नायँ है जाय और अपनी आर्य मर्यादा कूँ नाँय त्याग देय। स्त्रीन की तो बात ही कहा आपको त्रिभुवन-मन-मोहन रूप एवं मुरली कौ संगीत ऐसौ मोहक है कि या कूँ सुनि कै गौ, मृग, पच्छी वृच्छादि हू पुलकायमान है जाय हैं- फिर बिचारी नारीन की कहा चलै।
हे दयामय! जा प्रकार आदिदेव भगवान नारायन देवतान की रच्छा करैं हैं, याही प्रकार निस्संदेह आप हू ब्रज के दुख-भय दूर करिबै कूँ प्रकटे हौ। हम हूँ आपके मिलन-मनोरथ की अग्नि सौं अत्यंत संतप्त हैं और आर्त्त हैं, यातैं आप हम किंकरीन के वक्षस्थल पै और सिरन पै अपनौ कोमल हाथ राखौ और हम सबन कूँ दुख-मुक्त करौ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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