राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 137

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

तन्नः प्रसीद वृजिनार्दन तेऽङ्घ्रिमूलं प्राप्ता विसृज्य वसतीस्त्वदुपासनाशाः
त्वत्सुन्दरस्मितनिरीक्षणतीव्रकामतप्तात्मनां पुरुषभूषण देहि दास्यम्।।

हे पुरुषभूषन! आप के चरन-सेवा की आसा राखिबे वारी हम सब घर, कुटुंब-सबन कूँ छोड़ि कैं आपके चरनन के समीप आई है। आपकी मीठी मुसक्यान एवं तिरछी चितवन सौं हमारौ मन और देह कौ प्रेम मिलन की तीब्र अग्नि सौं संतप्त है गयौ है। अब आप विलंब न करि कैं हमें दासी रूप में स्वीकार कर सेवा सौभाग्य प्रदान करौ।

वीक्ष्यालकवृतमुखं तब कुण्डलश्री-गण्डस्थलाधरसुधं हसितावलोकम्।
दत्ताभयं च भुजदण्डयुगं विलोक्य वक्षः श्रियैकरमणं च भवाम दास्यः।।

हे प्यारे! घुँघरारी-अलकन के भीतर सौं झलकि रह्यौ आपको मुखकमल, कुंडलन की छबि सौं दमकते कपोल, अमृतमय अधर, हृदय कूँ हरिलैबे वारी तिरछी चितवन और मधुर मुसक्यान सौं जुक्त हैं। जैसे बधिक चौगान में जाय कैं जाल फैलाय चुगौ डारै और पच्छीन कूँ पकरै है, तैसैं ही आपकौ मुख तौ चौगान है ता में छूटि रही अलकावली जाल है; मुसक्यान रूपी चुगौ और वामे हमारे नेत्र रूपी पच्छी फँसि गये हैं। आपके ऐसे मुख कुँ निरखि कैं और भक्तन कूँ अभय दान दैबेवी आपकी भुजान कूँ तथा सौंदर्य की एक मात्र मूर्ति लक्ष्मीजी कूँ हूँ प्रीति सौं मुग्ध करिबे वारे आपके वक्षस्थल कूँ निहारि कैं हम सब आपकी बिना मोलकी सदा कें लियें दासी बन चुकी हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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