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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला
हे पुरुषभूषन! आप के चरन-सेवा की आसा राखिबे वारी हम सब घर, कुटुंब-सबन कूँ छोड़ि कैं आपके चरनन के समीप आई है। आपकी मीठी मुसक्यान एवं तिरछी चितवन सौं हमारौ मन और देह कौ प्रेम मिलन की तीब्र अग्नि सौं संतप्त है गयौ है। अब आप विलंब न करि कैं हमें दासी रूप में स्वीकार कर सेवा सौभाग्य प्रदान करौ।
हे प्यारे! घुँघरारी-अलकन के भीतर सौं झलकि रह्यौ आपको मुखकमल, कुंडलन की छबि सौं दमकते कपोल, अमृतमय अधर, हृदय कूँ हरिलैबे वारी तिरछी चितवन और मधुर मुसक्यान सौं जुक्त हैं। जैसे बधिक चौगान में जाय कैं जाल फैलाय चुगौ डारै और पच्छीन कूँ पकरै है, तैसैं ही आपकौ मुख तौ चौगान है ता में छूटि रही अलकावली जाल है; मुसक्यान रूपी चुगौ और वामे हमारे नेत्र रूपी पच्छी फँसि गये हैं। आपके ऐसे मुख कुँ निरखि कैं और भक्तन कूँ अभय दान दैबेवी आपकी भुजान कूँ तथा सौंदर्य की एक मात्र मूर्ति लक्ष्मीजी कूँ हूँ प्रीति सौं मुग्ध करिबे वारे आपके वक्षस्थल कूँ निहारि कैं हम सब आपकी बिना मोलकी सदा कें लियें दासी बन चुकी हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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