विषय सूची
श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला
हे कमललोचन! आपके चरन तल बनवासीन कूँ बहुत ही प्रिय हैं। और तौ कहा, भगवान् नारायन की प्रिया लक्ष्मी हू कूँ वे सुख दैबे वारे हैं। इन चरन कमलन कूँ जा समय ते हमने गोबर्द्धनादि कुंजस्थलीन में स्पर्श कियौ वा ही समय ते हम काहू दूसरे प्राणीन के समक्ष ठाड़ी हैबै जोग्य हू नायँ रहीं, फिर पति-पुत्रादिकन की सेवा करनौ तौ दूर की बात है।
जिन लक्ष्मीजी की कृपादृष्टि प्राप्त करिबे कै लियें बड़े-बड़े ब्रह्मादि देव प्रयास करैं हैं, वे लक्ष्मीजी भगवान् नारायण के वक्षःस्थल में निवास पाय करि कैं हू श्रीतुलसीजी कै संग-संग आपके चरन-कमलन की रज कूँ पायबे के लियें लालायित रहै हें। सो रज आपके सेवकन कूँ सहज ही प्राप्त है। हे प्यारे! हम हूँ सब कछु त्याग करि कैं आपकी चरन रज की सरल आई हैं- हम पै कृपा करौ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज