राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 136

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

Prev.png

श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

यर्ह्यम्बुजाक्ष तब पादतलं रमाया दत्तक्षणं क्वचिदरण्यजनप्रियस्य।
अस्प्राक्ष्म तत्प्रभृति नान्यसमक्षमंग स्थातुं त्वयाभिरमिता बत पारयामः।।

हे कमललोचन! आपके चरन तल बनवासीन कूँ बहुत ही प्रिय हैं। और तौ कहा, भगवान् नारायन की प्रिया लक्ष्मी हू कूँ वे सुख दैबे वारे हैं। इन चरन कमलन कूँ जा समय ते हमने गोबर्द्धनादि कुंजस्थलीन में स्पर्श कियौ वा ही समय ते हम काहू दूसरे प्राणीन के समक्ष ठाड़ी हैबै जोग्य हू नायँ रहीं, फिर पति-पुत्रादिकन की सेवा करनौ तौ दूर की बात है।

श्रीर्यत्प्रदाम्बुजरजश्चकमे तुलस्या लब्धावापि वक्षपि पदं किल भृत्यजुष्टम्।
यस्याः स्ववीक्षणकृतेऽन्यसुरप्रयास-स्तद्वद् वयं च तब पादरजः प्रपन्नाः।।

जिन लक्ष्मीजी की कृपादृष्टि प्राप्त करिबे कै लियें बड़े-बड़े ब्रह्मादि देव प्रयास करैं हैं, वे लक्ष्मीजी भगवान् नारायण के वक्षःस्थल में निवास पाय करि कैं हू श्रीतुलसीजी कै संग-संग आपके चरन-कमलन की रज कूँ पायबे के लियें लालायित रहै हें। सो रज आपके सेवकन कूँ सहज ही प्राप्त है। हे प्यारे! हम हूँ सब कछु त्याग करि कैं आपकी चरन रज की सरल आई हैं- हम पै कृपा करौ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः