अरे हाय, चोर-चक्रवर्ती तैंने अपने बंसीरूप निज सेवक हूँ भेजि कैं हमारे मनरूपी मानिक चुरवाय मँगाये, अब कैसी साधुन की सी बात करौ हौ, जैसैं कछु जानौ ही नायँ, यासौं माथौ नीचौ कियौ है।।8।।
हे प्यारे, बहुत कही, बहुत कही; अब ये माथौ आपके आगे है।।9।।
हे प्यारे, कहा गोवर्धन सौं बचाय अपने हाथन सौ मारिवे के लियें रच्छा करी ही, या बात कूँ हम सोचि रही हैं। दूसरे स्त्रीन कौ सुभाव होय हैं- जब अत्यंत दुख परै है, तब चरननख सौं पृथ्वी कूँ कुरेदन लगैं हैं। हे प्यारे, हम सबन कूँ बुलाय कैं आप कूँ तौ लज्जा नायँ लग रही है, माथौ ऊँचौ करि कैं सुंदर बैन सुनाय-सुनाय कैं मुसकाय रहे हौ। हम तौ लज्जा सागर में डूबी जायँ हैं, या ही तैं माथौ नीचौ कियौ है।।10।।
अरे विधाता, तैंने हमारो ऐसौ मुख क्यौं बनायौ कि हम प्यारे के सन्मुख देखिवे हू जोग्य नहीं रहीं। देखौ, देवतान की स्त्री तो बिमानन में बैठी कैसी अवग्या करि रही हैं, मानो कहि रही हैं कि गोपिन कूँ मान-गुमान कौ लेस हू नहीं है- इनके स्त्रीपने कूँ धिक्कार है- यह सुनि कैं ही हमने माथौ नीचौ कियौ है।।11।।
हे प्रानबल्लभ! हम तौ यह जानैं ही कि प्यारे हमारे मुखन कूँ देखि कैं बड़े प्रसन्न होयँगे, परंतु हाय! सर्बथा बिपरीत भई। या प्रेमास्पद प्यारे ने हमारौ ऐसौ तिरस्कार कियौ कि नीचैं ऊपर कहूँ ठौर नहीं रही। या ही तैं माथौ नीचौ कियौ है।।12।।
हे प्यारे! हम पृथ्वी कूँ यासौं कुरेदि रही हैं कि हमारे प्यारे ने तो हम कूँ यह उत्तर दियौ और हम सब घर-बार छोड़ि आई हैं। अतः हम न इत की रही न उत की, अतः हम पृथ्वी ही सूँ कहि रही हैं कि वो फटि जाय तौ हम वामें समाय जायँ। पृथ्वी ने तौ यह उत्तर दियौ कि मैं सब ब्रह्माण्ड कौ बोझ सहि सकूँ हूँ, परंतु एक हू पापी के बोझ कूँ नहीं सह सकूँ। फिर हम तौ सत कोटि गोपी हैं, वह हमारे बोझ कूँ कैसें सहैंगी। यासौं माथौ नीचौ कियौ हैं।।13।।