राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 125

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

ठाकुरजी-
अहो तिया कहा जान भवन तजि कानन डगरीं।
अर्द्ध गई सर्बरी कछुक डर डरीं न सगरीं।।


(श्लोक)

तद् यात मा चिरं गोष्ठं शुश्रूषध्वं पतीन् सतीः।
क्रन्दन्ति वत्सा बालाश्च तान् पाययत् दुह्यत्।।

अर्थ- हे गोपियौ, अब देर मत करौ। तुम्हारे बालक भूखे रोवँते होयँगे, उन कूँ दूध पिवैयौं। गैयान के बछरा भूखे रंभावते होयँगे, उन कूँ चुखैयौं, तुम अपने घरन कूँ जाऔ।

(श्लोक)

अथवा मदभिस्नेहाद् भवत्यो यन्त्रिताशयाः।
आगता ह्यपपत्रं वः प्रीयन्ते मयि जन्तवः ।।

अर्थ- अथवा तुम मो में अनुराग स्नेह करि कैं आई होउ सो यह तौ तुम्हारे योग्य ही है; कारण मो सौं तौ सब प्रानीमात्र हू प्रीति करैं हैं, फिर तुम क्यौं न करौगी। तुम तो प्रीति के सार कूँ जानिबे वारी हौ। हे गोपियौ। मैं तुमकूँ बिधाताद्वारा बतायौ बेद कौ मारग बताऊँ हूँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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