राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 120

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला

तब कहि श्रीसुकदेव, अहो यह अचरज नाहीं।
सब भाव भगवान् कान्ह चिह्न के हिय माहीं।।
परम दुष्ट सिसुपाल बालपन तें निंदक अति।
जोगिन कौं जो दुर्लभ सुलभहिं पाई सोई गति।।
हरि-रस-ओपी गोपी सकल तियनि तैं न्यारी।
कमल-नैन गोबिंद-चंद की प्रान-पियारी।।
तिन के नूपुर-नाद सुने जब परम सुहाये।
तब हरि के मन-नैन सिमिटि सब स्रवननि आये।।
झुनक-मुनक पुनि भली-भाँति सौं प्रकट भई जब।
पिय के अँग-अँग सिमिटि छबीले नैन मिले तब।।
सुभग बदन सब चितवन पिय के नैन बने यौं।
बहुत सरद ससि माहिं अरबरे द्वै चकोर ज्यों।।
अति आदर करि लईं भई पिय पैं ठाढ़ी अनु।
छबिलि छटनि मिलि छेक्यौ मंजुल घन-मूरति जनु।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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