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श्रीरासपञ्चाध्यायी लीला
- तब कहि श्रीसुकदेव, अहो यह अचरज नाहीं।
- सब भाव भगवान् कान्ह चिह्न के हिय माहीं।।
- परम दुष्ट सिसुपाल बालपन तें निंदक अति।
- जोगिन कौं जो दुर्लभ सुलभहिं पाई सोई गति।।
- हरि-रस-ओपी गोपी सकल तियनि तैं न्यारी।
- कमल-नैन गोबिंद-चंद की प्रान-पियारी।।
- तिन के नूपुर-नाद सुने जब परम सुहाये।
- तब हरि के मन-नैन सिमिटि सब स्रवननि आये।।
- झुनक-मुनक पुनि भली-भाँति सौं प्रकट भई जब।
- पिय के अँग-अँग सिमिटि छबीले नैन मिले तब।।
- सुभग बदन सब चितवन पिय के नैन बने यौं।
- बहुत सरद ससि माहिं अरबरे द्वै चकोर ज्यों।।
- अति आदर करि लईं भई पिय पैं ठाढ़ी अनु।
- छबिलि छटनि मिलि छेक्यौ मंजुल घन-मूरति जनु।।
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