राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 105

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीठाकुरजी क शयन-झाँकी

ठाकुरजी- अहा, मदनराज! आपकौ स्वागत है, कहौ, कैसैं आयबो भयौ?
कामदेव- हे महाराज, मैंने सब देवतान कूँ जीत्यौ है, अब मेरी आपसूँ जुद्ध करिबे की इच्छा है।
ठाकुरजी- सो तौ ठीक है, भाई! परंतु जुद्ध दो प्रकार कौ होय है, तुम मोते कौन सौ जुद्ध करौगे?
कामदेव- कौन-कौन सौ महाराज!
ठाकुरजी- एक तौ किले कौ और दूसरौ मैदान कौ जुद्ध।
कामदेव- महाराज, नैक और स्पष्ट करौ।
ठाकुरजी- अरे भाई, किले कौ जुद्ध तौ ऐसैं होय कि मैं आसन लगाय कैं बैठजाऊँ, तब तुम बाण मारो। जदि मेरौ मन बिचलित होय, तब तौ तुम जीते और नहीं तौ मैं जीत्यौ और मैदान कौ जुद्ध ऐसैं होय है कि मैं सत कोटि गोपीन के साथ रास करूँगौ, वा समय तुम अपने बाण मारौ। जदि मेरौ मन बिचलित होय, तब तुम जीते; नहीं तौ मैं जीत्यौ।
कामदेव- हे प्रभो, किले के जुद्ध तौ मैंने बहुत किये हैं। हमारौ और आपकौ तो मैदान कौ ही जुद्ध होयगौ।
ठाकुरजी- अच्छौ, तो अब तौ तुम बृंदाबन में रहो। मैं गोपीन कूँ बुलाय कैं जब रास करूँ, तब पधारियौ।

समाजी-

पद (राग देस, ताल-मूल)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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