राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 102

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरास-लीला

आसुरिजी- कहा भगवान्! सखी-रूप धारन करनौ परैगौ?

शंकरजी- हाँ, पुत्र, स्यामसुंदर की रासलीला सखीभाव बिना नायँ दीखै है।
 

पूज्य श्रीभाईजी विरचित ‘पद-रत्नाकर’ से

(राग पूरिया-तीन ताल)

मुरलिया बाजी रे बाजी।
जौं जहँ जैसैं रही तहाँ तहँ तैसैं ही उठी भाजी।।
तन-मन, असन-बसन, पति-सुत-घर सब की सुधि बिसराई।
चली बेगि आतुर सरिता ज्यौं, स्याम-समुँद कौं धाई।।
कोउ काहू की बाट न जोई, काउऐ संग न लीनी।
खिंचि चलि गई लोह-चुंबक-ज्यौं, भटू प्रेम-रँग-भीनी।।
जाइ मिली पिय सौं, मनभावति बस्तु अलौकिक पाई।
भुक्ति-मुक्ति, मैं मेरी सगरी हरि महँ जाई समाई।।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पद रत्नाकर, पद सं. 260

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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