राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 101

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीरास-लीला

प्रथम तौ श्रीमद्धगवद्भक्तन के मुखारविन्दु ते श्रद्धापूर्वक श्रीमद्भागवत स्रवण करै। श्रीमद्भागवत में कही भई नौ प्रकार की भक्तीन कौ सेवन करै-स्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद-सेवन, अर्चन, बंदन, दास्य, सख्य, आत्मनिवेदन पर्यन्त नबधा भक्ति कौ अच्छी रीति सौं स्वाद लैकैं श्रीरास-रस के स्वादी अति चतुर श्रीगुरुमहाराज सौं महारास रस कौ स्वादकी लैबै जुक्ति पूछै। तदनन्तर बनस्थली एकान्त में निवास करि कैं श्रीजुगल किसोर को ध्यान करै। ध्यान करत में मैं स्त्री हूँ अथवा पुरुष हूँ- ऐसी भावना निवृत्त है जाय, अपने कूँ भूलि जाय; तब रास के दरसन कौ चिंतन कौ अधिकारी होय है। यासौं, पुत्र! अबही तौ तुम नवधा भक्ति कौ ही सेवन करौ। नहीं तो बिपरीत फल है जायगौ।

आसुरिजी- हे स्वामिन्, कहा रास के देखिवे ते हू बिपरीत फल है जाय है?

शंकरजी- हाँ, पुत्र, जो भक्तिमार्ग ते बहिर्मुख हैं अथवा भक्तिमार्ग में प्रवृत्त हू हैं, परंतु श्रीकृष्णचंद्र के प्रेम कूँ अलौकिक नहीं जानैं हैं, सो सब अनधिकारी हैं। यदि ऐसे पुरुष रास के दरसन करैं तो ये प्राकृत स्त्री पुरुषन की भाँति रास कौ जानैंगे। और सांसारिक विषयन में आसक्त भये अधोगति कूँ प्राप्त होयँगे, नरक कौं जायँगे।

आसुरिजी- स्वामिन्! आप तौ बड़े कृपालु हैं और श्रीस्यामसुंदर के अनन्य प्रेमी हैं, सो आप ऐसी कृपा करौ कि मैं हू रास के दरसन कौ अधिकारी बनि जाऊँ।

शंकरजी- हे पुत्र, तुम्हारे ऊपर श्रीस्यामसुंदर की अत्यंत ही कृपा है और तुम्हारे हृदय में प्रेम-भक्ति कौ संचार हू है गयौ है। अब महारास कौ समय हू भयौ है, सो अब शीघ्र चलो, सखीरूप धरि कैं रास के दरसन करैंगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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