राधा अतिहि चतुर प्रवीन -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


राधा अतिहि चतुर प्रवीन।
कृष्ण कौ सुख दै चली हँसि, हंसगति कटि छीन।।
हार कै मिस इहाँ आई, स्याममनि कै काज।
भयौ सब पूरन मनोरथ, मिले श्रीब्रजराज।।
गाँठि आचर छोरि कै, मोतिसरी लीन्ही हाथ।
सखी आवति देखि राधा, लई ताकौ साथ।
जुवति बूझति कहाँ नागरि, निसि गई इक जाम।
'सूर' ब्यौरो कहि सुनायौ, मैं गई तिहि काम।।2006।।

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