राजति रोम-राजी रेष।
नील धन मनु धूम-धारा, रही सूच्छम सेष।
निरखिं सुंदर हृदय पर, भृगु-पाद परम सुलेख।
मनहूँ सोभित अभ्र-अंतर, संभु-भूषन बेष।
मुक्त-माल नछत्र-गन सम, अर्द्ध चंद्र बिसेष।
सजल उज्वल जलद मलयज, प्रबल बलिनि अलेष।
केकि कच सुर-चाप की छबि दसन तडित सुपेष।
सूर प्रभु की निरखि सोभा, तजे नैन निमेष।।635।।