राजति रोम-राजी रेष -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट



राजति रोम-राजी रेष।
नील धन मनु धूम-धारा, रही सूच्छम सेष।
निरखिं सुंदर हृदय पर, भृगु-पाद परम सुलेख।
मनहूँ सोभित अभ्र-अंतर, संभु-भूषन बेष।
मुक्त-माल नछत्र-गन सम, अर्द्ध चंद्र बिसेष।
सजल उज्वल जलद मलयज, प्रबल बलिनि अलेष।
केकि कच सुर-चाप की छबि दसन तडित सुपेष।
सूर प्रभु की निरखि सोभा, तजे नैन निमेष।।635।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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