नहिं अस जनम बारंबार -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सोरठ




नहिं अस जनम बारंबार।
पुरबलो धौं पुन्‍य प्रगटयौ, लह्यौ नर-अवतार।
घटै पल-पल, बढ़ै छिन-छिन, जात लागि न बार।
धरनि पत्ता गिरि परे तैं फिरि न लागै डार।
भय-उदधि जमलोक दरसै निपट ही अँधियार।
सूर हरि कौ भजन करि-करि उतरि पल्‍ले-पार।।88।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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