रघुपति जबै सिंधु-तट आए -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग धनाश्री
राम-सागर-संवाद


 
रघुपति जबै सिंधु-तट आए।
कुस-साथरी बैठि इक आसन, बासर तीनि बिताए।
सागर गरब धरयौ उर भतीर, रघुपति नर करि जान्यौ।
तब रघुबीर धरी अपनैं कर, अगिनि-बान गहि तान्यौ।
तब जलनिधि खरभरयौ त्रास गहि, जंतु उठे अकुलाइ।
कह्यौ न नाथ बान मोहिं जारौ, सरन परयौ हौं आइ।
आज्ञा होइ, एक छिन भीतर, जल इक दिसि कर डारौं।
अंतर मारग होइ, सबनि कौं इहिं बिधि पार उतारौं।
और मंत्र जो करौं देवमनि, बाँध्यौ सेतु विचार।
दीन जानि धरि चाप, बिहँसि कै दियौ कंठ तैं हार।
यहै मंत्र सबहीं परधान्यौ, सेतु बंध प्रभु कीजै।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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