रघुपति, बेगि जनत अब कीजै।
बाँधै सिंधु सकल सैना मिलि, आपुन आयसु दीजै।
तव लौं तुरत एक तौ बाँधौ, द्रुम-पाखाननि छाइ।
द्वितिय सिंधु सिय-नैन-नीर ह्वै, जब लौं मिलै न आइ।
यह विनती हौं करौं कृपानिधि, बार-बार अकुलाइ।
सूरजदास अकाल प्रलय प्रभु, मेटौ दरस दिखाइ॥110॥