रघुपति, जौ न इंद्रजित मारौं -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू
लक्ष्मण-वचन


 
रघुपति, जौ न इंद्रजित मारौं।
तौ न होउँ चरननि कौ चेरौ,जौ न प्रतिज्ञा पारौं।
यह दृढ़ बात जानियै प्रभु जू, एकहिं बान निवारौं।
सपथ राम परताप तिहारैं खंड करि डारौं।
कुंभकरन, दससीस बीस भुज, दानव-दलहिं विदारौं।
तबै सूर संधान सफल हौं रिपु कौ सीस उतारौं॥137॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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