योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 99

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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बाईसवाँ अध्याय
कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म


इस पर कृष्ण ने उत्तर दिया, "ऐसा जान पड़ता है कि तुम उससे डर गये हो। तुम्हारी इस कायरता पर मुझे बड़ा दुख होता है।" भीम को कृष्ण का यह कटाक्ष तीर के समान चुभा, परन्तु यह सँभलकर विनयपूर्वक अपना यथार्थ आशय समझाने लगा, "मैं किसी तरह भी दुर्योधन या उसके योद्धाओं से भय नहीं खाता। मुझे यदि विचार है तो केवल इतना ही है कि इस आपस की लड़ाई में सारे भारत की सन्तान नष्ट न हो जाये।" इस पर कृष्ण ने भीम को सम्बोधित किया और कहा, "मैं तुमको ताना नहीं देता। मैं तो तुमको याद दिलाता हूँ कि युद्ध से डरना क्षत्रिय का धर्म नहीं। मैं नहीं चाहता कि कायरता के कारण तुम अपने धर्म से विमुख हो बैठो। तुम धीरज धरो। मनुष्य से जितने यत्न हो सकते हैं उतना यत्न मैं सन्धि कराने के लिए करूँगा। परन्तु तुम समझ रखो कि मनुष्य की सारी युक्तियाँ सदा कृतकार्य नहीं होतीं। कुछ अवसरों पर ऐसा होता है कि मनुष्य भले के लिए काम करता है परन्तु उसका फल बुरा निकल आता है।

"इसलिए मनुष्य का कर्त्तव्य है कि अपनी मनोकामना की सिद्धि के लिए जो कुछ हो सकता है उसे वह करे। साथ ही उसका यह भी धर्म है कि वह केवल अपनी युक्तियों पर ही निर्भर न रहे, वरन् जो कुछ करता है उसे भगवान के अधीन समझकर करे ताकि परमात्मा उसकी युक्तियों में उसे सफल करे। कृषिकार अपने खेत में हल चलाता है, बीज बोता है, उसे पानी से सींचता है, परन्तु जल बरसाना उसके कर्म से बाहर है। यह कर्म परमेश्वर के अधीन है। इसलिए जो काम हम करें उसे परमेश्वर के अधीन होकर करें, साथ ही परमात्मा पर विश्वास रखें कि यदि उसकी कृपा होगी तो वह हमारी मनोकामना को अवश्य पूर्ण करेगा।"

अब कृष्ण युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन से विदा होकर नकुल और सहदेव से मिलने आये। नकुल ने तो यही कहा कि जैसी आपकी अच्छा हो वैसा ही कीजिएगा, परन्तु सहदेव ने हाथ जोड़कर कहा, "मेरी आन्तरिक इच्छा तो यही है कि हमारे हाथों दुर्योधन का नाश हो। आप ऐसी कार्रवाई करें जिससे लड़ाई अवश्य हो।" सहदेव का यह कहना था कि सभा में चारों ओर से 'युद्ध-युद्ध' की ध्वनि गूँज उठी। सात्यकि ने कहा कि हमको चैन तब ही आएगा जब हम दुर्योधन का सिर अपने हाथ से कुचलेंगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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